रामजीलाल सुमन के बयान पर बवाल, राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहने पर उठे सवाल

नई दिल्ली/जयपुर: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामजीलाल सुमन के हालिया बयान ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने महान राजपूत योद्धा राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहा, जिसके बाद राजपूत समाज और इतिहासकारों ने कड़ी आपत्ति जताई है। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचों तक इस बयान की आलोचना हो रही है।

क्या कहा था रामजीलाल सुमन ने?

रामजीलाल सुमन का बयान एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सामने आया, जहाँ उन्होंने कहा कि “राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाकर गद्दारी की थी।” इस बयान के बाद सियासी हलकों में हलचल मच गई।

इतिहासकारों और राजपूत समाज की प्रतिक्रिया

इतिहासकारों का कहना है कि राणा सांगा ने बाबर को लोदी वंश के खिलाफ जरूर आमंत्रित किया था, लेकिन उनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता संतुलन बनाना था। राजस्थान के इतिहासकार डॉ. अरविंद सिंह ने कहा,
"राणा सांगा ने कभी देश के खिलाफ गद्दारी नहीं की। उन्होंने बाबर से युद्ध किया और भारत की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए।"

राजपूत करणी सेना और अन्य राजपूत संगठनों ने भी इस बयान की निंदा की है। करणी सेना के अध्यक्ष महिपाल सिंह मकराना ने कहा,
"अगर कोई राणा सांगा जैसे महावीर को गद्दार कहेगा, तो यह सहन नहीं किया जाएगा। हम मांग करते हैं कि रामजीलाल सुमन अपने शब्द वापस लें और सार्वजनिक रूप से माफी माँगें।"

राजनीतिक दल की प्रतिक्रिया

रामजीलाल सुमन के बयान पर भाजपा ने प्रतिक्रिया दी है।

भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा, "इतिहास को गलत तरीके से पेश करना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। राणा सांगा को गद्दार कहना न केवल राजपूतों का बल्कि पूरे भारत का अपमान है।"

सोशल मीडिया पर बवाल

इस बयान के बाद #RanaSanga और #RamjilalSumanMaafiMaango जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। कई लोगों ने इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि इतिहास को राजनीतिक फायदे के लिए गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए।

क्या रामजीलाल सुमन देंगे सफाई?

विवाद बढ़ने के बाद अब सबकी निगाहें रामजीलाल सुमन पर हैं। फिलहाल उन्होंने अपने बयान पर सफाई नहीं दी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, जल्द ही वह मीडिया के सामने अपना पक्ष रख सकते हैं।

निष्कर्ष

राणा सांगा को गद्दार कहने का यह बयान सिर्फ इतिहास से छेड़छाड़ ही नहीं, बल्कि वीर योद्धाओं के सम्मान को ठेस पहुँचाने जैसा है। राजपूत समाज और इतिहासकारों की नाराजगी को देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या रामजीलाल सुमन अपने बयान पर कायम रहते हैं या फिर माफी मांगते हैं।

(यह रिपोर्ट तटस्थ तथ्यों पर आधारित है और इसमें किसी भी पक्ष की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य नहीं है।)

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